श्री आई माता जी की पावन पुण्य धरा बिलाड़ा जहां एक और प्राकृतिक सौंदर्य, श्री जीजी माता पाल (Shri Jijimata Paal) मंदिर पतालियावास,बिलाड़ा और कृषि जगत के लिए जग विख्यात है तो दूसरी तरफ विभिन्न पावन तीर्थ स्थल बिलाड़ा के देवस्थान होने का साक्ष्य है । बिलाड़ा में अवतारी देवी शक्तियां मानव जाति के लिए सदा वंदनीय है इनके चमत्कारों के प्रतीक चिन्हों पर आज भी मानव जाति अपनी श्रद्धा भक्ति के पुष्प अर्पित कर अपने आप को धन्य मान रही है ।
गुजरात के अंबापुर गांव में बीकाजी डाबी के घर एक कन्या रूप में जीजी श्री आई माता ने अवतार लिया। असुरो का मान मर्दन कर वृद्ध रूप धारण कर माताजी अपने नंदी संघ, पाटिया और ग्रंथ लेकर मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में अपने दिव्य चमत्कार बताते हुए संवत 1521 भादवा सुदी 2 (बीज ) को बिलाड़ा आगमन किया। दक्षिण दिशा की ओर से भरी बारिश के मौसम के कारण में बिलाड़ा से कुछ किलोमीटर पहले माताजी रुके, जहां सीरवी किसान अपने पशुओं को चरा रहे थे। अधिक बारिश होने के कारण सीरवी चरागाह किसानों को बैठने की जगह भी नहीं मिल रही थी , यह सब आईमाताजी देख रहे थे और मन्न में विचार करके जीजी माताजी ने अपनी बाएं पांव की मोजड़ी जड़ी जिसमें उस मोजड़ी की रेत से एक विशाल पाल का निरंमण हुआ, जिसे हम आज जीजी माता पाल के नाम से जानते हैं।
जीजी माताजी पाल मंदिर, पतालियावास-बिलाड़ा
जब बादलों की ओट से सूर्य निकला तब माताजी ने अपना नंदी एक जगह बांधा और अपनी छड़ी जमीन में रोपा उसी समय उस जगह एक चमत्कारी छायादार हरा भरा खेजड़ी का पेड़ प्रकट हो गया, जो आज भी यहां मौजूद है । उपस्थित किसानों द्वारा जीजी माता जी के दिव्य चमत्कार को देखकर अचंभित हो गए और जीजी माता जी की जय जयकार करने लगे । जीजी माताजी ने अपने आई पंथ के धर्म का ज्ञान पाठ करवा कर आई माताजी के 11 नियमों की पालना करने को कहा और उक्त खेजड़ी के पेड़ की 11 परिक्रमा करने से सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होगी कहकर बिलाड़ा की ओर प्रस्थान कर दिया । श्री जीजी माता जी के बिलाड़ा प्रस्थान करने के बाद वहां पर उपस्थित सीरवी किसानों द्वारा खेजड़ी के चमत्कारिक वृक्ष के नीचे एक कच्चा चबूतरा बनाकर एक त्रिशूल की स्थापना की और पूजा अर्चना करने लगे । उक्त कच्चे चबूतरे को सर्वप्रथम सीरवी नाथा म जी भागरानी ने पक्का बनवा कर जीजी माता जी का ध्यान करने लगे ।
श्री जीजी माताजी पाल मंदिर पतालियावास बिलाड़ा की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम