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आईमाता जी की जीवनी

पानी की चमत्कृत घटना
आईमाता जी की जीवनी

पानी की चमत्कृत घटना

किसानों ने जीजी से खाना – पानी लेने को आग्रह किया परन्तु जीजी ने उन्हें दोपहरी करने के पश्चात्‌ जीजी के साथ वाले नंदिये (बौल) को नदी में पानी पिलाकर लाने को कहा । जीजी के बैल को पानी पिलाने मे उन लोगोने असमर्थता प्रकट की क्योकि उस सय वहां आस – पास कहीं भी पानी उपलब्ध नहीं था । वे किसान भी पानी के लिए बहुत अधिक परेशान थे । कहा जाता है कि पानी और पूत भाग्य के बिना नहीं मिलते परन्तु सन्त अथवा साधु पुरुष अथवा मातृशक्ति अपने भाविकों के लिए भाग्य भी बदल सकते है । जीजी ने मुस्कराकर कहा कि नदी में शुद्द पीने योग्य पानी उपलब्ध है । जब वे किसान बैल को लेकर उस स्थान पर गए तो वहां पानी की उपलब्धता देखी , वे जीजी के ईश्वरीय रुप की मन ही मन प्रशंसा करने लगे । नदी में पानी कहॉ से आया ?  यह प्रशन विचारणीय था क्योंकि जेठ की तपती गर्मी में बिना वर्षा के सूखी नदी में अचानक पानी आना आश्चर्यजनक लगता है पर...
पानी की चमत्कृत घटना
आईमाता जी की जीवनी

पानी की चमत्कृत घटना

देवनगरी नारलाई से पुर्व – उतर की ओर मेवाड़ राज्य के ही एक छोटे से गांव डायलाणा पधारी । जीजी इस गांव की एक छोटी सी नदी के किनारे स्थित एक बेरे पर ऐसे समय पधारीं जब जेठ महिने की प्रचंड गर्मी में वृक्ष विहीन खेत में कुछ सीरवी किशान दोपहरी करने के लिए हलों कों आपस में खड़ा करके उनके ऊपर चारा डालकर कृत्रिम छाया बनाने की असफल चेष्टा कर रहे है । त्रिकालदशी जीजी उन किशान की मनोव्यथा समझ गई । सरल तथा सहज ह्रदयी किशानो ने एक साध्वी सी स्त्री को ऐसी तपती गर्मी में वहॉ आया देखकर आश्चर्यपूर्वक उस कृत्रिम छाया वाले स्थान पर बैठने का विन्रमता पूर्वक आग्रह किया । किसान, मजदूर , गरीब आदि के ह्रदय की पवित्रता सहज दिखती है। क्यकिं वे खुद कष्ट उठाकर दूसरो को सुख पहुंचाने में अपने आप को सन्तुष्ट एवं आनन्दित महसूस करते है । आई माताजी के बारे में और पढ़ें - click here ...
अखन्ड  ज्योति कि स्थापना व श्री आईजी नाम
आईमाता जी की जीवनी

अखन्ड ज्योति कि स्थापना व श्री आईजी नाम

एकांत तथा तपस्या हेतु उपयुक्त स्थान जानकर जीजी इस गुफा में पधारी तथा अहोरात्र तपस्या में लीन रहने लगी । शिवशक्ति की अखण्ड साधना व अराधना से प्रभावित होकर जीजी के दर्शनार्थ अनेक दर्शनार्थी वहां आने लगे । जीजी ने सगुण – निर्गुण रुप से समन्वय के लिए अखन्ड ज्योति जलाकर लोगो को ‘ तमसो मां ज्योतर्गमय ” तथा ईश्वरतत्व की अनुभुति हेतु प्रेरित किया। जीजी ने लोगो को सांसारिक कर्म करते - करते प्रभु स्मरण तथा समर्पण का संदेश दिया । जीजी  ने ईश्वर स्मरण के लिए पोशाक, दाढ़ी – जटा , माला आदि बाह्रा आड़म्बरों पर ही निर्भर नहीं रहने अपितु ‘ मनसा वाचा कर्मणा ‘ से शुद्द रहते हुए उस परमत्व के स्मरण के स्मरण का सुगम , सरल तथा सहज संदेश दिया ।  इन सरल उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक लोग जीजी के अनुभवी बन गए तथा जीजी के संदेशो का अक्षरश: पालन करने लगे । लोगो का अहो भाग्य था कि उन्हे चलते- फिरते व काम करते ई...
परिहारों की गवाड़ी (कुल) मैं आगमन
आईमाता जी की जीवनी

परिहारों की गवाड़ी (कुल) मैं आगमन

विनम्र तथा अनभिज्ञ परिहारों ने जीजी को देवी मानकर हर्षोलासित होकर होकर उनका आदर सत्कार एवं आवभगत की । जीजी इस नगर में अपनी दिव्य दृष्टि से सीरवीयों की सतत्‌ कर्म – शीलता परन्तु आध्यात्मिकता के अभाव को देखा तो उनके कल्याण के लिए सहज भाव से परिहारों की गवाड़ी (कुल) में बिना बुलाए मेहमान बनकर पधारी । परिहारों की सरलता तथा भोलेपन से जीजी बहुत प्रभावित हुई । उन्होने परिहारो से उनके (जीजी के) बैल को एक खूंटे से बांधने को कहा । परिहारो मे से किसी ने उस बैल को घर में ही एक खूंटेनुमा पत्थर से बांध दिया । जीजी ने रात भर परिहारो के घर मे ही भजन – कीर्तन तथा भगवान का स्मरण किया । उन्होने घर के सदस्यो को सहज भाव से ईश्वरीय ज्ञान तथा शक्ति के बारे मे सरलता पूर्वक जानकारी दी । वहां पर उपस्थित समस्त स्त्रियों – पुरुषो तथा बच्चो को अपार तथा अलौकिक आनन्द की अनुभूति हुई । जीजी के परिहारों के घर से चले जाने से...
देवनगरी नारलाई मैं आगमन
आईमाता जी की जीवनी

देवनगरी नारलाई मैं आगमन

बीकाजी तथा उनकी धर्मपत्नी के निर्वाण के पश्चात्‌ जग कल्याण हेतु समय के अनुसार एक बैल व कुछ धार्मिक पुस्तकें लेकर साध्वी के रुप में अम्बापुर से उतर की ओर रवाना हुई । जगह जगह पर एकांत स्थानों पर तपस्या करते हुए जीजी मेवाड़ राज्य की तथा (वर्तमान में पाली जिले में देसूरी तहसील में) देवनगरी नारलाई पधारी । देवनगरी नारलाई उस समय नाडूलाई अथवा नारदपुरी के नाम से प्रसिद्द थी । इस नगर से 10 किलोमीटर उतर – पश्चिम में नाडोल नगर चौहान राजवंश की राजस्थानी के रुप में विख्यात रहा है । देवनगरी नारलाई सिद्द- संतो की नगरी थी । इस नगर में ऐसे कई तांत्रिक , सिद्द तथा योगी थी जो केवल हठ के लिए दूसरे स्थानों से मन्दिर उड़ाकर लाते थे । जिसमें एक तपेश्वर महादेव का मन्दिंर है तथा दूसरा आदिनाथ भगवान (बीस देवता) का मन्दिर है । इस नगर में गोरखनाथ की तपस्या स्थली का मन्दिर भी विधमान है । इस देवनगरी में सभी धर्मों तथा जाति...
जीजी के स्थान पर साक्षात्‌ मां जगदम्बा के विकराल तथा विराट रुप के दर्शन
आईमाता जी की जीवनी

जीजी के स्थान पर साक्षात्‌ मां जगदम्बा के विकराल तथा विराट रुप के दर्शन

जब जीजी ने बचपन की ड्यौढी पार कर यौवन के पथ पर कदम रखा जब जीजी ने बचपन की ड्यौढी पार कर यौवन के पथ पर कदम रखा तो उनकी अलौकिक सुन्दरता की चर्चाएं चौपालों पर होते-होते अन्ततोगत्वा मांडु के तत्कालीन सुल्तान मोहम्मद खिलजी जो कि शेरशाह शूरी का समकालीन था‘ के कानों तक पहुंचती। खिलजी जीजी की सुन्दरता की चर्चा सुनकर मन ही मन जीजी पर आसक्त हो गया। विदेशी शासकों, मुगलों, देशी राजाओं, ठाकुरों तथा सक्षम व्यक्तियों का स्त्री-सुन्दरता पर मोहित होना उस समय आम बात तथा युद्ध का कारण होती थी। महमूद खिलजी ने बीकाजी डाबी को दरबार-ए-खास में बुलाकर जीजी का हाथ स्वयं के लिए मांगा। बीकाजी ने अपनी पुत्री को सामान्य स्त्री न मानते हुए धर्म संकट में पड़कर अनमने मन तथा दबाव में हामी भर दी। कहते है कि सच्चे तथा सत् जनों के घर दुःख का तांता लगा ही रहता है। बीकाजी के वर्षो से प्रशिक्षित तथा अनुभवी धैर्य ने उस संकट की घड़...
श्री आईजी का जन्म
आईमाता जी की जीवनी, राजनेतिक

श्री आईजी का जन्म

पौराणिक साहित्य के अनुसार द्रौपदी, सीता, हनुमान आदि का जन्म भी कोख से नहीं हुआ बताया जाता है। किवदन्तियों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्री आईजी का जन्म कोख से नहीं हुआ है। पौराणिक साहित्य के अनुसार द्रौपदी, सीता, हनुमान आदि का जन्म भी कोख से नहीं हुआ बताया जाता है। अतः यद्यपि वैज्ञानिकता के आधार पर ऐसा होना नामुमकिन है परन्तु कई बार प्रकृति की अलौकिकता में ऐसा होना संभव भी हो सकता है। प्राणियों में क्लोन की प्रक्रिया सफल होने योग्य नहीं है परन्तु विज्ञान की प्रकृति के चमत्कार की पराकाष्ठा तो है ही। कबीर तथा दादू जो कि भक्ति साहितय तथा आध्यात्मिकता के अवतार थे, भी फूलों में मिले थे। अलौकिकता के रंग में रंगे श्री आई जी बचपन से ही जीजी नाम से विख्यात होते गए। जीजी का सामान्य अर्थ बहिन है जिसे कोई भी व्यक्ति आदर तथा वात्सल्य से पुकार सकता था। जीजी को दैहिक ओज अत्यन्त आकर्षक तथा सुन्दर था। सं...
बीकाजी डाबी का जन्म
आईमाता जी की जीवनी

बीकाजी डाबी का जन्म

संवत्‌ 1440 के आस - पास  डाबी सांवतसिंह के परिवार में एक करामाती पुरुष का जन्म हुआ जिसका नाम बीका रखा गया बीका बचपन से ही मॉ अम्बा का परम्‌ भक्त था । जब बीका  की आयु विवाह योग्य योग्य हुई तो उसके माता- पिता ने सुयोग्य कन्या के साथ बीका का विवाह भी कर दिया। दोनो अम्बाजी के परम्‌भक्त थे । समय ने बीकाजी व उनकी पत्नी को चिंता में डाल दिया क्योंकी एक दशक बीतने के बाद भी उन्हें सन्तान सुख की प्राप्ति नहीं हुई । बीकाजी ने काफी चिन्तन ने काफी चिन्तन कर यह माना है शायद उनके प्रारब्ध कर्मों का फल है तथा प्रारम्ध कर्मों के फल से छुटकारा भक्ति , ईश्वर की दया तथा क्रियमाण कर्म की अच्छाइयों से ही हो सकता है अतः उन्होने अम्बाजी की भक्ति दिन रात चौगुनी करके की । संतान हीनता एक अभिशाप है । संतानहीन व्यक्ति अन्तर्मुखी होते है । समाज  में आज भी सन्तानहीन मनुष्यों का महत्व अन्य व्यक्ति कम ही आं...
श्री आईजी की जीवनी कि प्रमाणिकता
आईमाता जी की जीवनी

श्री आईजी की जीवनी कि प्रमाणिकता

श्री आईजी या आईजी महाराज की जीवनी को प्रमाणिकता से जानने के लिए अनेक विद्दजनों , भक्तो , इतिहासकारों , संतो, समाज सुधारको ने प्रेरित प्रयास किया । हिन्दू धर्म दर्शन में श्रुति का आधार भी आईजी के जीवन के बारे में हमें सही जानकारी व आनंद प्राप्ति का स्त्रोत प्राप्त होता है । श्री आई माता का संक्षिप्त इतिहास लेखक नारायरणराम लेरचा ने उनकी पुस्तक प्रष्ठ संख्या 9 पर श्री आईजी की पारिवारिक प्रष्ठभूमि के बारे खोज पूर्ण तथ्य प्रस्तुत किया है , “ राजस्थान की सीमावर्ती जिले बाड़मेर के बालोतरा कस्बे से 8 मील की दूरी पर प्राचीन काल में खेड़ नामक राज्य था । खे‌ड़ का प्राचीन और ऐतिहासिक नाम श्री पुर था , जो मारवाड़ परगने की विख्यात राजथानी थी । उस समय खेड़ राज्य के अधीन 560 गॉव थे । मगर कालान्तर में लड़ाइयो और झंझावतों को सहता हुआ खेड़ राज्य  छिन्न- भिन्न होकर उज‌ड़ गया । खेड़ के उजड़ने के बाद भी वहॉ संवत&nbs...