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Tag: सीरवी समाज की कुलदेवी

आई पंथ बेल के ग्यारह नियम
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आई पंथ बेल के ग्यारह नियम

आई पंथी कहलाएंगे और डोरा बंद कहे जाएंगे | Aaimataji Ke Beel ke igyaraha niyam आई माताजी ने माधव को डोरे का भेद बताया और कहा कि जो इस डोरे को बंधेगा उसे किसी भी प्रकार की जीवन में कमी नहीं रहेगी धन और यश मिलेगा । इस डोरे के बिना अपने शरीर को अपवित्र समझें, यदि कभी यह टूट भी जाए तो पानी तक मत पीना और तुरंत दूसरा बांध देना । यही आई पंथ का पवित्र डोरा है इस डोरे का नाम बेल रखा । माताजी ने ग्यारह तार और 11 गांठ की इस बेल के ग्यारह नियम बताएं और हर इंसान को नियम अपने मन में अपने जीवन में धारण करने के लिए कहा। नीति धर्म गुरु आज्ञा पालो , बांधो आईजी री बेल । प्रथम सूत्र झुट तजे सुख आवे , करलो जल्दी पहेल ॥ रे भक्तों बांधो .... दूजा सूत्र तन पावन राखो , छोड़ो मांस नशा आज । तीसरा सूत्र दान – पुण्य अहिंसा , छोड़ो शोषण और ब्याज । रे भक्तों बांधो .... चोथा सूत्र संस्कार चरित्र , छोड़ो जुआ व्यभिचार ...
विज्ञान भी मानता है बच्चे के बेहतर विकास के लिए जरूरी है दादा-दादी, नाना-नानी की सीख
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विज्ञान भी मानता है बच्चे के बेहतर विकास के लिए जरूरी है दादा-दादी, नाना-नानी की सीख

हम में से अगर कोई भी अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ बड़े हुए है तो हम भाग्यषाली है, क्या हमारी आने वाली पीढ़ी भी ऐसा कर रही है, आज जिस तरह षहर बड़े और कमरे छोटे पड़ रहें है जो जवाब होगा नहीं । लोग अकेले होते जा रहे है, सब अपनी एक छोटी सी फैमिली में रहते है, जिसके कारण दादा-दादी, नाना-नानी कुछ दिन के लिए मेहमान बनकर आते है और चले जाते है। विज्ञान भी मानता है कि जिन बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार मिलता है उनको बस प्यार ही नहीं मिलता, उनकी परवरिष और उनके व्यक्तित्व विकास में भी बहुत सहयोग मिलता है। दादा-दादी के साथ गुजारे हुए पल, हमारी जिन्दगी के सबसे यादगार पल होते है, इनका प्यार और ज्ञान बच्चे के बचपन को सुखद बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। जो बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते है उनमें अलग तरह की समझ और संवेदनाये होती है। ऐसे बच्चे मिलनसार, खुष और चीजों को बांटकर इस्तेमाल करने वाले ...
सीरवी समाज एक नजर में
इतिहास, राजनेतिक

सीरवी समाज एक नजर में

सीरवी समाज की उत्पत्ति लगभग 800 वर्ष पूर्व सीरवी एक जाति है जो आज से लगभग 800 वर्ष पुर्व से ही गोडवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्रों में रह रही है। कालान्तर में यह जाति राजस्थान के जोधपुर और पाली जिले में कम संख्या में पाई जाती थी । सिरवी समाज का इतिहास वर्तमान तो सदैव मनुष्य के नेत्रों के सम्मुख रहता ही है, जिसके सहारे वह भविश्य की भी कल्पनाऐ करता रहता है लेकिन जब उसे अतीत की ओर झांकना पड़ता है, तब उसे इतिहास नामक आश्रय की शरण में जाना पड़ता हैं। किसी भी जाति-धर्म, भाशा-सभ्यता, संस्कृति व देष के अतीत के उत्थान-पतन को हम इतिहास के आइने मे ही देख सकते है। बोली घटनाओं का सच्चा वृतान्त ही इतिहास है। सबसे ज्यादा 3 लाख मतदाता सीरवी समाज कौम में, व्यापार जगत में पूरे देश में नाम कमा रहा सीरवी समाज का युवा ।  सीरवी समाज मूल रूप से कृषक कौम है। वर्तमान में पूरे देश में अपने व्यापार की वजह से का...