Seervi Samaj में आपको समाज की हर संभव जानकारी देना का प्रयास किया जायेगा | सीरवी समाज के वेबसाइट में आपको आई माताजी के सम्पूर्ण जीवन, प्रथम दीवान से लेकर वर्तमान दीवान तक सभी दीवान साहब की पूरी जीवनी- उनके कार्य,उनके राजय के बार में के बारे में विस्तार से बताया जायेगा | सीरवी समाज की उत्पाती समाज के लोगो के कार्य एवं साल भर होने वाले विभिन सामाजिक कार्यक्रम के बारे में भी विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त कर सकते है |
सीरवी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?
खोज करने से पता चला कि जालोर में हल चलाकर कृषि कार्य अपनाने से सम्भवतः इन्हें ‘सीरवी या सीरवीही’ कहा गया होगा। जालोर से निकलने के बाद संगठित होकर ये लोग लूनी नदी के आस-पास पूर्व में (पहले से) बसे लोगों के साथ सीर ( साझे) में खेती करने के कारण ‘सीरवी’ कहलाए।
सीरवी कौन सी जाति में आते हैं?
सीरवी समाज खारड़िया राजपूतों की जाति में आते हैं
विक्रम संवत् 1355 के युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी की सेना का हारना और विक्रम संवत् 1362 में अलाउद्दीन खिलजी का राजा कान्हडदेव के साथ संधि करना यह दर्शाता है कि राजतंत्रीय विद्या के समय में कान्हडदेव ने अलाउद्दीन खिलजी द्वारा की गई संधि के विश्वास से सैन्य बल पर कम और अपनी आर्थिक स्थिति पर ज्यादा ध्यान दिया, इसी दरम्यान खारड़िया राजपूतों के साथ कृषि व्यवसाय हेतु विक्रम संवत् १३६५ में ताम्र-पत्र (लिखित आदेश) जारी किया जाना प्रतीत होता है और खेती एक दूसरे के सहयोग व सीर में ही होती है। अतः सीरवियों के साथ एवम् अपने बंधुओं के साथ आपसी सीर में खेती करने से खारड़िया राजपूत भी खारड़िया सीरवी कहलाने लगे और हमारे पूर्वजों ने भी अपनी कौम का नाम “सीरवी खारड़िया” स्वीकार कर लिया था।
सीरवी समाज में कितने गोत्र हैं?
सीरवी समाज में 24 गौत्र है
समाज के राव-भाट बंशीलाल जी, राणाराम जी भैरावत एवम् गांव लेटा मीणो के राव दौलतराम जी के अनुसार जालौर (जाबालीपुर) नरेश कान्हडदेव के समय से पहले समाज पूर्वजों (खारड़िया राजपूतों) ने (जो वि. सं. १३६५ में कौम सीरवी (क्षत्रिय) समाज खारड़िया के नाम मुकर्रर हुई) जालौर, आहोर, सिरोही के आस -पास पहाड़ी इलाकों में व कुछ आज पाली जिले में है, २४ खेड़े बसाये,
जो निम्न है :- १. राठौड़ (बिठू द्वितीय), २. परिहार (नाचोली), ३.पंवार (मानपुरा), ४. चौहान (बिठुड़ा), ५. सोलंकी (उकरला), ६. गहलोत (कुरजिया), ७. लचेटा (लेटा), ८. सेपटा (हींगोला), ९. काग (कुक्षी), १०. भायल (खेजडिया), ११. परिहारिया (जोगणी), १२. देवड़ा (आका थुम्बा), १३. आगलेचा (आकों रा पादरला), १४. भुम्भाड़िया (बागोड़ा), १५. चोयल (पादरला), १६. हाम्बड़ (जेतपुरा), १७. सेणचा (केरला प्रथम), १८. सोनगरा (सामतीपुरा), १९. सींदड़ा (सोदरा), २०. खंडाला (मंडवला), २१. बर्फा (गोखडू), २२. मोगरेचा (केरला द्वितीय), २३. सियाल्ल (बड़ली) २४. मूलेवा (मूलेवा) ।
सीरवी जाति की कुलदेवी कौन सी है?
सीरवी समाज की गोत्रानुसार कुलदेवियाँ | Gotra wise Kuldevi List of Seervi Samaj
कृपया कुलदेवी की विस्तृत जानकारी के लिए निचे लिखे कुलदेवी के नाम पर क्लिक करे
कुलदेवी | गौत्र |
अर्बुदा देवी/ अधर माता – सिरोही | परमार-पंवार-काग -भायल -हाम्बड़ – सिंदरा |
नागणेची /चक्रेश्वरी /रथेश्वरी / नागणेचिया माता – जोधपुर | राठोड-बर्फा |
आशापुरा माता – नाडोल -पाली | चौहान-चोयल-देवड़ा -सेपटा -मुलेवा -मोगरेचा- चावडिया |
सुंधा माता – भीनमाल -जालोर | आगलेचा |
बाण माता/बायण माता/ब्राह्मणी माता – गुजरात | गेहलोत- खंडाला |
क्षेम कारी (खीमज) माताजी-भीनमाल | सोलंकी |
गाजन माता केरला-पाली | परिहार |
आई पंथ क्या होता है?
आईमाताजी की बेल की इग्यारह गांठ ओर ग्यारह नियम | Aaimataji Ke Beel
इतिहासकार लिखते है की जाणोजी के पुत्र माधव हुए जो बचपन में घर छोड़कर चले गए थे । माधव जी एक बार सेठ जी की बारात को लेकर रामपुरा से पीपाड़ आए थे, उस समय बिलाड़ा आकर माधव अपने माता-पिता से मिले और आई माता जी को भी नमन किया और वापस चलने लगे ।
जाणोजी ने रोका पर माधव जी ने कहा कि मुझे बारात को वापस रामपुरा पहुंचाना है इसलिए मुझे साथ जाना जरूरी है | इस पर आई माताजी ने भी जाणोजी को समझा कि, अभी माधव जी को जाने दो वह शीघ्र वापस आ जाएंगे ।
माधव को गए काफी समय बीत गया लेकिन माधव वापस नहीं आया इस पर जाणोजी चिंतित हो आई माता से अरदास की कि आप माधव को शीघ्र वापस बुलाएं ।
आई माताजी ने कहा आप चिंता ना करें अब माधव शीघ्र आ जाएंगे यह का कार माताजी ने 11 तार का डोरा बनाकर जाणोजी की पत्नी को दिया और कहा कि रोज सवेरे उठकर, स्नान कर पूजा पाठ कर इस डोरे के एक गांठ लगाते रहना | इसके 11 गांठ लग जाएगी तब माधव तुम्हारे पास आ जाएंगे “मन में किसी बात की चिंता नहीं करें” | डोरा देकर आई माताजी अंतर्ध्यान में लीन हो गए ।
जब माधव की मां ने अंतिम 11 गांठ लगा दी ११वें दिन माधव बिलाड़ा पहुंच गए,आते ही आई माता जी के चरणों में शीश नवाया और अपने माता-पिता को प्रणाम किया ।
तब आई माताजी ने इग्यारह तार का 11 गांठ का डोरा माधव के दाहिने हाथ में बांधा तथा कहा कि यह मेरे धर्म का डोरा है, मेरे धर्म पंथ को मानने वाले पुरुष अपने दाहिने हाथ के व औरतें अपने गले में यह डोरा बांधे। मेरे धर्म को मानने वाले आई पंथी कहलाएंगे और डोरा बंद कहे जाएंगे । फिर माधव जी वह आई माता ने अपने धर्म का प्रचार प्रसार किया । आई माता ने किसी जाति से भेदभाव नहीं किया, कोई ऊंच-नीच नहीं रखा, हर जाति के लोगों को डोरा बंद बनाया और हर जाति वालों के लिए अपने मंदिर के द्वार खुले रखे । आज भी हर जाति के लोग बिना भेदभाव के बिलाड़ा में आई माताजी वडेर में दर्शन हेतु आते हैं।
आई माता किसका अवतार है?
आईमाताजी अम्बेमाता का अवतार है जीनोने मानव कल्याण के लिए अम्बापुर में अवतार लेकर जगह जगह अपने मुख से अमृत वाणी सुनाकर हर जाती धरम के लोगो को सत्य मार्ग पर चलने का आह्वान किया ।
बाण माता किसकी कुलदेवी है?
गेहलोत- खंडाला गौत्र परिवार | Kuldevi Baanmata Ji
सीरवी समाज में गेहलोत- खंडाला गौत्र परिवार बाण माताजी को कुलदेवी के रूप में मानते है।
भारत में कुल कितने पंथ है?
आई माता का गुरु कौन थे ?
आई माता के मंदिर को क्या कहा जाता है?
कौन से मंदिर में सदा केसर आती है ?