नहीं बढ़ रहे हैं :
ऐसा नहीं है। सिर्फ लगता ही है कि समाज में हिंसा और अपराध बढ़ रहे हैं।आजकल सरकारी एजेंसियां, पुलिस और प्रशासन अपराधों को रोकने के लिए जितने अधिकचु स्त और गतिशील हैं, उतने पहले कभी नहीं थे। पहले तो अपराध के बारे में पता ही नहीं चल पाता था। आजकल अगर क्राइम होता भी है, तो पुलिस अपराधी को पकड़ कर अपराध खोलभी देती है। अपराध तो पहले भी होते थे। पर जिस तरह से आबादी बढ़ी है, उसकी तुलना मेंदेखा जाए तो अपराध नहीं बढ़ रहे हैं। इसी तरह से कहा जा रहा है कि सड़क दुर्घटनाओं मेंज्यादा लोग मर रहे हैं, पर यातायात पुलिस आपको हर चौराहों पर मौजूद मिलेगी और वाहनगलत चलानेवालों को पकड़ रही है। रात में भी अगर पुलिस को कॉल करते हैं, तो वह तत्कालपहुंचती है। सुरक्षा के प्रबंध व्यापक हैं। इसी कारण अपरा ध नियंत्रण में हैं।
पैसे की दौड़ है
आज संपूर्ण समाज विलासिता और आराम के साथ जिंदगी जीना चाहताहै। इस के लिए इंसान को पैसा चाहिए। पैसा पाने के लिए वह अपराध करने में जरा भी नहींहिचकता। अधिकांश अपराधों के पीछे पैसा ही है। हत्या एं, लूट व चोरियां लोग पैसा पाने के लिए कर रहे हैं। यह अलग बात है कि वह अपराधों से क माए पैसे का उपयोग भी कर पाता है या नहीं। आज महंगाई का दौर है। बिना पैसे के कोई समस्या हल नहीं हो पाती। दूसरी बात यह भी है किसमाज में आथिर्क विषमता बढ़ रही है। कुछ लोगों के पास बेहिसाब धन है तो कुछ को रोटी की भी परेशानी है। पढ़े लिखे लोगों के पास काम नहीं है।
ऐसी स्थितियां आ गई हैं कि या तोव्यक्ति अपराध करे या फिर आत्महत्या। उसे जो रास्ता समझ में आता है, वह चुन रहा है।
बढ़ने के पीछे कारण हैं :
अपराध बढ़ रहे हैं। उसके पीछे कार ण भी हैं।जब तक सरकार इन कारणों का निवारण नहीं करेगी, तब तक अपराधों पर नियंत्रण संभ वनहीं है। आज देश में लगातार शाति व्यक्ति बेरोजगार हो रहे हैं।
जनसंख्या निरंतर बढ ़ रही है। पैसा कुछ खास लोगों की जेब में सिमटता जा रहा है। कानून व्यवस्था, पुलिस-प् रशासन शिथिल होते जारहे हैं। लूट-खसोट का दौर समाज में प्रत्या व अप्रत्या रूप में च ल रहा है। ऐसी स्थिति मेंअपराधों को कैसे रोका जा सकता है?
समाज में जिस तरह से एकाकी जीन जीने की प्रवृत्ति बढ़ रहीहै, उससे भी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। अपराधी दिन दहाड़े, सरेआम अपराध करते हैं।उनका विर ोध करने का साहस किसी को भी नहीं होता है।
अपराध और बढ़ेंगे :
अपराध तो अभी और बढ़ेंगे। इनको रोक पाना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है। समाजकी स ंरचना ही ऐसी होती जा रही है। हर आदमी पैसा चाहता है। जब वह सही रास्ते से पैसानहीं क मा पाता तो अपराध की तरफ बढ़ जाता है। कानू न इतना कमजोर हो गया है कि उसेपैसों से खरीदा जा सकता है। ऐसे लोगों की भी कमी हो गई है जिनके आचरण को देखकरसीमित साधनों की जिंदगी को जिया जा सके। अब ऐसा लगता है कि जि सके पास पैसा है,उसके पास सब कुछ है। पैसे की दौड़ नहीं रुकेगी तो अपराध कैसे रुकेंगे ? समाज में भी पैसेवालों को इज्जत मिलती है, चाहे उसने वह पैसा अपराध की दुनिया से ही क्यों न कमाया हो।
ईमानदारी से नियंत्रण हो :
समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। उन पर नियंत्रणईमानदारी से नहीं हो पा रहा है। बहुत से अपराधों की तो पुलिस कोखबर भी नहीं होती है।पुलिस उन्हें अनदेखा करती रहती है। छोटे-मोटे अपराधियों से पुलि स की जान-पहचान भीहोती है। चाहे वह इन्हीं छोटे-मोटे अपराधियों के माध्यम से कुख्यात अपराधी का पता लगातीहो, पर ये ही छोटे-बदमाश आगे चल कर बड़े अपराधी बन जाते हैं। अपराध की दुनिया केलोगों के रिश्ते भी ऊंची प हुंच वालों से होते हैं। इसलिए भी पुलिस कभी-कभी अपराधियों कोपकड़ने में हिचकती है। अपराधों को अगर ईमानदारी से नियंत्रित नहीं किया गया तो अपराधकी दुनिया को बढ़ावा ही मिलेगा।