जीजी आगे बढ़ी । सेहवाज एवं बगड़ी नगर के बीच श्री आईजी को एक मालिन सब्जी का ओड़ा (बड़ी छाबड़ी) लेकर मिली जिसमे बथुआ, पालक, चन्द्रलोई आदि था। जीजी ने सारी सब्जी को एक सोने के टके में खरीदकर उनके नंदिये को खिला दिया । जीजी ने उस मालिन को सलाह भी दी कि तुम्हारी आज की मजदूरी हो गई है अत: घर जाकर ईश्वर ध्यान करना। लालची मालिन जीजी की सलाह को नहीं मानते हुए पुन: सब्जी का ओड़ा भरकर बेचती हुई संयोग से जीजी को पुन: रास्ते में मिल गई ।
जीजी ने उसे सवेरे वाली सलाह याद दिलाई और कहा कि जो मनुष्य भगवान लोभ को छोड़कर धन लोभ में लगा रहता है वह न तो माया प्राप्त कर सकता है और न ही राम । इसलिए कहा ‘ दुविधा में दोनो गये , गाय मिली न राम । ’
इस प्रकार जीजी का सन्देश वेदों, पुराणो, संत वाणियो, उपनिषदों आदि के गुढ़ार्थ के सरलीकृत रुप में निहित हैं । इस प्रकार तत्व चिन्तन कभी प्राचीन एवं समय से परे नहीं हो सकता ।
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