अलौकिक जीजी डायलाणा से दूसरे दिन भैसाणा नामक गांव पहुंची ।
गांव के बाहर एक तालाब के किनारे एक ग्वाले ने जब इस साध्वी महिला को भगवा पोशाक तथा बैल के साथ देखा तो कोई तांत्रिक जानकर जीजी को भला – बुरा कहने लगा अन्धविश्वासों के कारण गांवो में दुधारु पशुओं को तथाकथित तांत्रिकों , जादूगरों तथा कर्मकाण्डयो से दूर रखने की कोशिश की जाती थी ताकि पशु बीमार नहीं पड़े व दूध निकालवाने में आनाकारी नहीं करें ।
जीजी ने ग्वाले के अपशब्दों तथा क्रोध पर कोई ध्यान नहीं दिया एवं मूर्ख तथा अज्ञानी मानकर आगे बढ़ने लगीं परन्तु क्रोधी ग्वालें के बेकाबूपन ने जीजी के बैल को पीटने की हिमाकत कर डाली और जीजी की ओर भी फेंकने के लिए इधर – उधर पत्थर ढ़ूंढ़ने लगा । उधर जीजी के शाप से भैंसें पत्थर बन चुकी थी । ग्वाले की नजर जब उसकी गासो – भैसो की तरफ गई तब उसके हाथ में उठाया हुआ पत्थर उसके हाथ से उसके पास ही गिर गया । वह घबरा गया । ग्वाला जीजी के चरणों में गिर पड़ा ।
कलयुग में दुष्क्रमों का प्रतिफल (दण्ड) तत्काल ही मिल जाता है । मानव को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है । जीजी ने निर्दयी तथा क्रोधी ग्वाले को अत्याचार व घमण्ड से दूर रहकर विनम्रता पूर्वक नेक कर्म करने की सलाह देकर क्षमा तो किया ही साथ ही इस घटना के माध्यम से अनेक लोगो को सीख भी दी ।
यह घटना एक ओर अहंकारी के अहंकार का मर्दन करती है तो दूसरी ओर निरीह व मूक पशुओं पर दयाद्र हो उनको अपनी दैनिक शक्ति द्दारा पशु योनि से मुक्ति का मार्ग भी प्रदर्शित करती है । निश्चित ही वे निरीह पशु पुनर्जन्म के सिद्दान्त के आधार के अनुसार अगली योनि में मानवीय रुपो मे उत्पन्न होर सोहम् बनें होंगे ।
भैसाणा के सीरवीयों और अन्य लोगों ने जीजी का आदर सत्कार कर उनके सानिध्य का लाभ लिया । जीजी ने अनेक सरल दृष्टान्तों के माध्यम से लोगो के मन – मस्तिष्क को शिव – शक्ति की ओर प्रेरित कर उनका उपकार किया ।
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