जीजी पाल से जीजी नगाजी हांबड़ की ढ़ाणी पधारी ।
नगाजी हांबड़ का ज्येष्ठ पुत्र बिला बहुत अत्याचारी सूदखोर , क्रुर तथा नास्तिक था। ढ़ाणी के निवासी उससे बहुत परेशान थे । वे बीला को ईश्वर से सजा मिले ऐसा सोचा करते थे क्योकिं जो व्यक्ति अत्याचार सहता है परन्तु न्याय नहीं पा सकता ,वह न्याय की गुहार के लिए ईश्वर के विधान में ही विश्वास करता है।
बीला हांबड़ के पापों व अत्याचारों का घड़ा भर चुका था अत: श्री आईजी उसके घर गए व रात्रि विश्राम हेतु स्वीकृति मांगने लगे। धन तथा बड़पप्न में अन्धे बीला हांबड़ ने श्री आईजी का घोर अपमान किया। बीला हांबड़ द्दारा किए गए अनुचित अपमान को सहते हुए श्री आईजी ने उसके कर्मों का फल भुगतने का अभिशाप दिया। श्री आईजी के शाप के फलस्वतुप बीला हांबड़ के धन – दौलत, पुत्र, बहुएं, गायै, वैभव तथा फला – फूला ताश के पतों की तरह बिखर गया। संतों व साध्वियों के अपमान का फल अत्यन्त कष्टकारी होता है।
ईश्वर भक्ति के गुणार्थ को वही व्यक्ति जान सकता है जिसका लोक किसी महासागर के भंवर में फंस गया हो। उस भंवर से बाहर निकालने के लिए वह जो पुकार करता है, वहीं प्रभु का सच्चा स्मरण है। गजराज को मगरमच्छ गहरे पानी में ले गया , ईश्वर की पुकार ने उसको बचाया । द्रोपदी को आदरणीय लोगो के बिच नग्न करने की स्थिती में कृष्ण ने उसे अन्नत साड़ी दी । प्रहलाद ने जलते खम्भे को चींटियों के कारण पकड़ा । श्री आईजी बीला हाम्बड़ के घमण्ड को चूर कर बिलाड़ा पधारी।
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