बिला जीजी की ऐसी सेवा करने लगा मानो उसे उसकी वर्षो की तपस्या का फल मिल गया हो।
जीजी सोजत से आगे सूकड़ी नदी के किनारे बिलावास पधारीं जहां बिला नामक एक ईश्वर भक्त सीरवी परिवारों के साथ ढ़ाणी बसाकर रह रहा था। जीजी को दिव्य रुप में देखकर बिला का उत्साही मन भाव विह्रल हो गया। उसने जीजी को दण्डवत् प्रणाम कर उसकी ढ़ाणी को पवित्र करने का निवेन किया।
बिला उसकी ईश्वर भक्त पत्नी तथा अन्य लोगो ने गद्गद हो जीजी की सेवा साधना की ।जीजी बिला और अन्य व्यक्तियो के भावो और उत्सुकता युक्त सेवा से अत्यधिक प्रसन्न हुए। जीजी ने बिला तथा अन्य लोगो के सुखमय जीवन जीने की कामना की और बिला की ढ़ाणी के फलने – फुलने का आर्शिवाद भी दिया। जीजी की मेहरबानी और दया से बिला की ढ़ाणी बिलावास बन गया। इस गांव के लगभग सभी लोग जीजी के अनुयायी बन गए।
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