श्री आईजी बिलाड़ा में ऐसे व्यक्ति के घर पधारीं जिसके भौतिक संसार में भयंकर तूफान मचा हुआ था ।
केवल ईश्वर भजन उस व्यक्ति को व उसकी धर्मपत्नी को जिन्दा रखे हुए था। उस व्यक्ति का नाम था जीवण (जाणोजी राठौड़) सीरवी। जीवन सीरवी बहुत दरिद्र और दुखी थे। उनके दुख की पराकाष्ठा तब पार कर गई जब उनके बुढ़ापे का एक मात्र सहारा इकलौता पुत्र बचपन में ही खो गया था। वे उसको खोजते – खोजते बूढ़े व निराश हो गए थे।
ऐसे दुखियारे के घर के भाग्य द्दार उस समय खुले जब श्री आईजी उनके घर के दरवाजे के सामने जाकर ‘माधो की मां बाहर आ’ ऐसी आवाज दी। माधो जीवन राठौड़ का खोया पुत्र था। इस संसार में मां की ममता का वर्णन करना कठिन है परन्तु ऐसी मां की ममता का वर्णन करना लगभग असंभव है । जिसका पुत्र वर्षों पूर्व खो गया हो तथा वह उसे पाने के लिए पागल हो।
श्री आईजी के दर्शन पाकर जीवण तथा उनका पत्नी ने आदर के साथ उसको घर ले गए। संतो व साध्वियों का आदर करना जीवण तथा उसकी पत्नी को बहुत भाता था। जीवण की निर्धनता साधु संतों की आभ – भगत में आड़ी आती थी। अपनी पत्नी के गहने लेकर जीवण एक सेठ की दुकान पर अनाज खरीदने गया। फंसे व्यक्तियो को लूटने में सेठ–साहूकारों की ह्रुनर अद्दितीय होती है। सेठ गहने लेकर भी जीवण को बाहर फेंकने योग्य अनाज देकर अचानक हुए फायदे पर मन ही मन खुश था।
पाक कला में निपुण जीवन की पत्नी ने दाना-दाना चुनकर पहली बार उसके घर श्री आईजी के लिए हलवा(सीरा) बनाया। तीनों खाने के लिये बैठे। जीवण की पत्नी ने जैसे ही पहला कौर होठों के लगाया, उसके दुःख के आंसू धाराओं में बदल गये। इस भावात्मक दृश्य को देखकर जीवण की आंखे नम हो गई तथा गल्ला रुन्ध गया। श्री आईजी से जीवण की पत्नी ने कहा कि उसके घर पहली बार मिठाई बनी, आज यदि उसका इकलौता पुत्र मौजूद होता तो इस अभागिन मां को कितनी खुषी होती ?
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