श्री आईजी या आईजी महाराज की जीवनी को प्रमाणिकता से जानने के लिए अनेक विद्दजनों , भक्तो , इतिहासकारों , संतो, समाज सुधारको ने प्रेरित प्रयास किया ।
हिन्दू धर्म दर्शन में श्रुति का आधार भी आईजी के जीवन के बारे में हमें सही जानकारी व आनंद प्राप्ति का स्त्रोत प्राप्त होता है । श्री आई माता का संक्षिप्त इतिहास लेखक नारायरणराम लेरचा ने उनकी पुस्तक प्रष्ठ संख्या 9 पर श्री आईजी की पारिवारिक प्रष्ठभूमि के बारे खोज पूर्ण तथ्य प्रस्तुत किया है , “ राजस्थान की सीमावर्ती जिले बाड़मेर के बालोतरा कस्बे से 8 मील की दूरी पर प्राचीन काल में खेड़ नामक राज्य था ।
खेड़ का प्राचीन और ऐतिहासिक नाम श्री पुर था , जो मारवाड़ परगने की विख्यात राजथानी थी । उस समय खेड़ राज्य के अधीन 560 गॉव थे । मगर कालान्तर में लड़ाइयो और झंझावतों को सहता हुआ खेड़ राज्य छिन्न- भिन्न होकर उजड़ गया । खेड़ के उजड़ने के बाद भी वहॉ संवत में बना रणछोड़राय का मंदिर स्थापित है । जहॉ हर वर्ष भादवा सुदी अष्टमी को भव्य मेला भरता है । खेड़ सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है । ” संवत् 1950 के आसपास खेड़ राज्य पर मोहिल जाति के कल्याणसिंह के पुत्र प्रतापसिंह का शासन था ।
प्रतापसिंह आयोग्य शासक था अतः उसके तमाम सरदार व प्रजा परेशान थे । उस समय वहॉ का मंत्री डाबी सावंतसिंह था , जो प्रतापसिंह था , जो प्रतापसिंह से नासुख था प्रतापसिंह को मरवाना चाहता था । एक बार डाबी सावंतसिंह गुप्त रुप से पाली के शासक राव आसनाथजी (राव सिंहजी के पुत्र) से पाली की राजस्थानी गुन्दोज जाकर मिला और आसनाथजी को विवाह के बहाने खेड़ लाकर प्रतापसिंह को मरवा डाला तथा संवत् 1337 में खेड़ की गद्दी पर राव आसनाथजी को बैठा दिया ।
राव आसनाथजी ने खेड़ को मारवाड़ परगने की राजस्थानी बनाया । राव आसनाथजी जब खेड़ के शाशक बन गये तो सोचा कि मंत्री सावंतसिंह अपने स्वामी के साथ विश्वासघात कर मुझे गद्दी पर बैठाया है, तो भविष्य में मेरे साथ भी धोखा कर सकता है । यह सोच कर एक दिन मंत्री सांवतसिंह को मरवा डाला । इस घटना से मोहिल जाति व डाबी जाति के अन्य परिवार भी खेड़ छोड़कर गुजरात में काठियावाड़ और अम्बापुर जाकर बस गये । डाबी परिवार अम्बापुर में बसें ।
आई माताजी के बारे में और पढ़ें – click here