किसानों ने जीजी से खाना – पानी लेने को आग्रह किया परन्तु जीजी ने उन्हें दोपहरी करने के पश्चात् जीजी के साथ वाले नंदिये (बौल) को नदी में पानी पिलाकर लाने को कहा ।
जीजी के बैल को पानी पिलाने मे उन लोगोने असमर्थता प्रकट की क्योकि उस सय वहां आस – पास कहीं भी पानी उपलब्ध नहीं था । वे किसान भी पानी के लिए बहुत अधिक परेशान थे । कहा जाता है कि पानी और पूत भाग्य के बिना नहीं मिलते परन्तु सन्त अथवा साधु पुरुष अथवा मातृशक्ति अपने भाविकों के लिए भाग्य भी बदल सकते है ।
जीजी ने मुस्कराकर कहा कि नदी में शुद्द पीने योग्य पानी उपलब्ध है । जब वे किसान बैल को लेकर उस स्थान पर गए तो वहां पानी की उपलब्धता देखी , वे जीजी के ईश्वरीय रुप की मन ही मन प्रशंसा करने लगे । नदी में पानी कहॉ से आया ? यह प्रशन विचारणीय था क्योंकि जेठ की तपती गर्मी में बिना वर्षा के सूखी नदी में अचानक पानी आना आश्चर्यजनक लगता है परन्तु महान् व्यक्तियो के वचनो से जड़ता में चेतनता आ सकती है , असम्भव भी सम्भव हो सकता है । भगवान राम की सेना के नल और नील नामक वानरों द्दारा फेंके गए पत्थरों से भारत व श्रीलंका के मध्य पुल बन गया । राम के स्पर्श मात्र से अहिल्या जड़ मूर्ति से चेतन बन गई।
कृष्ण का सखा अर्जुन तथा सूर्य केवल बाणों से वर्षा कराकर सूखी धरती को हरा भरा बनाने का सामथर्य रखने थे । संत लोक कल्याण के लिए प्रकृति का रुप बदल सकते है । पानी की इस चमत्कृत घटना से अभिभूत किसानों ने जीजी से छायाहीन खेत में दोपहरी करने की दुविधा की व्यथा भी बताई । जीजी ने किसानो को उन्ही हलों से बनाई कृत्रिम छाया मे सोने को कहा ।
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