देवनगरी नारलाई से पुर्व – उतर की ओर मेवाड़ राज्य के ही एक छोटे से गांव डायलाणा पधारी ।
जीजी इस गांव की एक छोटी सी नदी के किनारे स्थित एक बेरे पर ऐसे समय पधारीं जब जेठ महिने की प्रचंड गर्मी में वृक्ष विहीन खेत में कुछ सीरवी किशान दोपहरी करने के लिए हलों कों आपस में खड़ा करके उनके ऊपर चारा डालकर कृत्रिम छाया बनाने की असफल चेष्टा कर रहे है । त्रिकालदशी जीजी उन किशान की मनोव्यथा समझ गई ।
सरल तथा सहज ह्रदयी किशानो ने एक साध्वी सी स्त्री को ऐसी तपती गर्मी में वहॉ आया देखकर आश्चर्यपूर्वक उस कृत्रिम छाया वाले स्थान पर बैठने का विन्रमता पूर्वक आग्रह किया । किसान, मजदूर , गरीब आदि के ह्रदय की पवित्रता सहज दिखती है। क्यकिं वे खुद कष्ट उठाकर दूसरो को सुख पहुंचाने में अपने आप को सन्तुष्ट एवं आनन्दित महसूस करते है ।
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