बीकाजी तथा उनकी धर्मपत्नी के निर्वाण के पश्चात् जग कल्याण हेतु समय के अनुसार एक बैल व कुछ धार्मिक पुस्तकें लेकर साध्वी के रुप में अम्बापुर से उतर की ओर रवाना हुई ।
जगह जगह पर एकांत स्थानों पर तपस्या करते हुए जीजी मेवाड़ राज्य की तथा (वर्तमान में पाली जिले में देसूरी तहसील में) देवनगरी नारलाई पधारी । देवनगरी नारलाई उस समय नाडूलाई अथवा नारदपुरी के नाम से प्रसिद्द थी । इस नगर से 10 किलोमीटर उतर – पश्चिम में नाडोल नगर चौहान राजवंश की राजस्थानी के रुप में विख्यात रहा है । देवनगरी नारलाई सिद्द- संतो की नगरी थी । इस नगर में ऐसे कई तांत्रिक , सिद्द तथा योगी थी जो केवल हठ के लिए दूसरे स्थानों से मन्दिर उड़ाकर लाते थे । जिसमें एक तपेश्वर महादेव का मन्दिंर है तथा दूसरा आदिनाथ भगवान (बीस देवता) का मन्दिर है । इस नगर में गोरखनाथ की तपस्या स्थली का मन्दिर भी विधमान है ।
इस देवनगरी में सभी धर्मों तथा जातियों के बीच लोग निवास करते थे । इस गांव में सीरवीयों का बाहुल्य था तथा सीरवीयों में भी परिहार गौत्र के सीरवीयों का आधिक्य तथा प्रभाव था ।
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