जीजी के रज कणो से बना टीला बाद में जीजी पाल के नाम से प्रसिद्द हुआ।
जीजी बिलावास से गांव खारिया नींव होते हुए बिलाड़ा (बिलपुर) की दक्षिण की ओर आठ किलोमीटर दूर एक स्थान पर उनके बैल को भादवे महिने की ताजी घास में स्वेच्छा से चरता देखकर आराम करनें लगीं । उस स्थान पर पहले से ही सीरवीयों के कुछ लड़के पश नजदीक खींच लिया। लड़के जीजी के चारो ओर बैठकर जीजी की बातें सुनने एवं दर्शन का आन्नद उठाने लगे। अचानक उतर दिशा से काले कजरारे बादल आए और तीव्र गर्जना के साथ मूसलाधार बरसने लगे । कुछ ही समय में वहां पानी हो गया । जीजी, लड़के और पशु वहां खड़े एक खेजड़ी के वृक्ष के निचे आ गए। चारों तरफ बाढ़ जैसी स्थिती होने के कारण खेजड़ी के नीचे भी पानी आने लगा। लड़के तथा घबराने लगे। जीजी ने उसके पांवो में पहनी मोजड़ियां उतारी और उनमे आए रज कणो को उस स्थान पर डालते ही एक बड़ा टीला बन गया। लड़के व पशु वर्षा के जल में बहने से बच गए । बच्चो ने जीजी के इस उपकार का ह्दय से स्वागत किया तथा नतमस्तक होकर नमस्कार किया । लड़को के देरी होने और मूसलाधार बारिश होने से उनके परिजन तरह – तरह की शंकायें करते हुए उस स्थान पर पहुंचे जहां लड़के और पशु जीजी के सानिध्य में सकुशल थे। उन्होने जीजी के उपकारों श्रीचरणों में गिर पड़े । जीजी ने उन्हें भगवान पर भरोसा रखने का उपदेश दिया ।
जीजी के रज कणो से बना टीला बाद में जीजी पाल के नाम से प्रसिद्द होता गया। जीजी ने इस स्थान पर दो पत्थरों पर खुद के हाथो से शक्ति का प्रतीक त्रिशुक उकेरा और खेजड़ी के तने के पास उन्हें स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना की।
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