जब जीजी ने बचपन की ड्यौढी पार कर यौवन के पथ पर कदम रखा
जब जीजी ने बचपन की ड्यौढी पार कर यौवन के पथ पर कदम रखा तो उनकी अलौकिक सुन्दरता की चर्चाएं चौपालों पर होते-होते अन्ततोगत्वा मांडु के तत्कालीन सुल्तान मोहम्मद खिलजी जो कि शेरशाह शूरी का समकालीन था‘ के कानों तक पहुंचती। खिलजी जीजी की सुन्दरता की चर्चा सुनकर मन ही मन जीजी पर आसक्त हो गया। विदेशी शासकों, मुगलों, देशी राजाओं, ठाकुरों तथा सक्षम व्यक्तियों का स्त्री-सुन्दरता पर मोहित होना उस समय आम बात तथा युद्ध का कारण होती थी।
महमूद खिलजी ने बीकाजी डाबी को दरबार-ए-खास में बुलाकर जीजी का हाथ स्वयं के लिए मांगा। बीकाजी ने अपनी पुत्री को सामान्य स्त्री न मानते हुए धर्म संकट में पड़कर अनमने मन तथा दबाव में हामी भर दी। कहते है कि सच्चे तथा सत् जनों के घर दुःख का तांता लगा ही रहता है। बीकाजी के वर्षो से प्रशिक्षित तथा अनुभवी धैर्य ने उस संकट की घड़ी में जीने मरने के भंवर में फंसकर बेबस होकर कुछ न कुछ पक्षीय समाधान की ओर प्रेरित किया। मानवीय भावों की पारखी जीजी ने शीघ्र ही पिताश्री की बेबसी के समाधान के लिए माण्डु के सुल्तान महमूद खिलजी को सहर्ष विवाह प्रस्ताव पाकर कामुक तथा महत्वाकांक्षी माण्डु सुल्तान अत्यन्त खुश होकर निश्चित दिन असंख्य बारातियों को लेकर अम्बापुर आ धमका।
किंवदन्तियों एंव जनश्रुतियों के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि जीजी ने एक छप्परपुमा झोपड़ी से असंख्य समर्थ बारातियों को इच्छित तथा स्वादिष्ट खान- पान का आभुषण करवाया । हजार हाथों वालें सृष्टि संचालक की शक्ति अलौकिक तथा अपरिमित होती है । पाण्डवों की पत्नी द्रोपदी ने भी इसी भक्ति से अनेक भूखे ऋषि – मुनियों को इच्छित भोजन करवाकर सन्तुष्ट किया था।
जीजी की साधना शक्ति के फलस्वरुप असंख्य बारातियों के मुख से इस चमत्कृत घटना को सुनकर स्ंवय महमूद उस झोपड़ी के दरवाजे के समक्ष गया । कपटी तथा कमुक महमुद को जीजी के स्थान पर साक्षात् मां जगदम्बा के विकराल तथा विराट रुप के दर्शन हुए ।
शैतान तथा पापी ईश्वर विरोधी होने के बावजूद भाग्यशाली होते है क्योकि उन्हें ईश्वर के सगुण रुप दर्शन होते है तथा उस परम् सता की अनुभूति मात्र से उनका जनम – जनम का दोष समाप्त हो जाता है ।
भाग्यशाली महमूद मां के विराट रुप दर्शन से अभिभूत हो मां के चरणो में क्षमायाचना एंव प्रायश्चित करने के लिए गिर पड़ा । प्रायश्चित ने उसे मानवीय भावनाओं की ओर प्रेरित किया । दूसरे ही क्षण मां जगदम्बा के स्थान पर जीजी से सामान्य , सरल तथा सौम्य रुप ने उसे ग्लानि तथा शर्म से भर दिया । महमूद वहां से सच्चा मानव बनकर गया ।
इस अद्भुत घटना के पश्चात् अनेक लोग जीजी से प्रभावित हुए परन्तु जीजी ने लोगों के जमावड़े के बीच सामान्य स्थिति से अत्यन्त् मनोयोग से उनके बूढ़े माता – पिता की सेवा सुश्रूषा की । बीकाजी बार – बार जीजी के दोहरे रुप दर्शन से अपने आप को धन्य मानते थे । तपस्या के बल से बीकाजी ने त्रिविध तापों से मुक्ति का पथ प्रशस्त किया तथा स्वंय एंव उनकी धर्मपत्नी का जीवन धन्य कर दिया ।
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