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माघ सुदी बीज का दिन ही सर्वश्रेष्ठ क्यो ?

माघ सुदी बीज दीवान पद्द विराजे : इस प्रकार जीवण सीरवी के बिलाड़ा के कर्ता – धर्ता बनने के पश्चात्‌ माधव व उसकी पत्नियों द्दारा श्री आईजी की मनोयोग से सेवा करने से उनका जीवन सफल एंव सुखद बन गया ।

संवत्‌ 1538 में जीवण सीरवी के निधन के पश्चात्‌ माधव में वैराग्य की बाढ़ आ गई । माधव का जीवन भक्तिमय हो गया । अज्ञानी व दु:खी लोगो के कल्याण की उत्कंठ इच्छा माधव के मन मे जाग्रत हुई । माधव अब पूर्ण रूप से संत माधवजी बन गए ।

माधवजी ने श्री आईजी से मारवाड़ व मेवाड़ राज्य के विभन्न गांवो में साक्षात्‌ पधारकर दु:खी व अज्ञानी लोगों के दुख दर्द को हरने का करबद्द निवेदन किया ।

 श्री आईजी की रथ यात्रा

माधवजी में जगे इस अलौकिक प्रकाश से श्री आईजी बहुत प्रभावित हुई  । श्री आईजी अब दैहिक रुप से बूढ़े हो गए थे अत: इतना पैदल चलना संभव नहीं था अत: श्री आईजी की  आज्ञानुसार माधवजी ने समयानुसार एक सुन्दर , आकर्षक व  मजबूत बैल गाड़ी का रथ बनाकर इसे मन्दिरनुमा आकार दिया । यह बैल गाड़ी श्री आईजी का रथ (वैल) कहलाया ।

श्री आईजी रथ  में बिराज कर माधवजी के साथ उन स्थानों से  होते हुए वापस गए , जिधर से वे पधारीं थी । श्री आईजी के दर्शन व श्रवण के लिए अधिकाधिक श्रद्दालु आने लगे । श्री आईजी बिलावास , सोजत, डायलाणा होते हुए नारलाई व नाडोल पधारे । नाडोल के पास एक गांव कोटड़ी पधारे जहां एक गोसाई बाबा ने श्री आईजी का भव्य स्वागत किया ।

गोसाई बाबा ने श्री आईजी की लिए उनके दो चेलों ओर रुपगिरी व केशरगिरि को आज्ञा देकर उनका जीवन धन्य करने को कहा । श्री आईजी उन समस्त गांवों में पधारीं जहां सीरवियो का बाहुल्य था । श्री आईजी बाबागांव , बिठुडा, कोसेलाव , चाणौद आदि गांवो में पधारी तथा विभिन्न जातियों यथा सीरवियों , लुहारों , गुरुओं आदि जाति के लोगो को उपदेशित कर उनके दु:ख दर्दों को दूर कर पुन:  बिलाड़ा पधारीं ।

गोयन्ददास जी का जन्म

माधवजी तथा उनकीं दोनों पत्नियों का नित्य कर्म ऐसा बन  गया था कि उन सबका जीवन श्री आईजी के सानिध्य में आल्हादित रहता था । इस बीच माधव जी की सीरवी पत्नी सोढ़ी ने सम्वत्‌ 1530 मे एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गोयन्द रखा ।

गोयन्द होनहार व श्री आईजी का परम्‌ भक्त था । बचपन के धार्मिक संस्कारों व श्री आईजी के सानिध्य में उसका जीवन अत्यन्त आकर्षक व आनन्दायक बन गया ।

जब गोयन्ददास 27 वर्ष का हुआ तब माधवजी रुग्ण हो गए तथा सम्वत्‌ 1557 की कार्तिक वद षष्टमी को उन्होने देह छोड़ दी । ईश्वर की लीला कितनी निराली होती है ? मार काट करने वाले सेनापति माधव श्री आईजी की  दया से संत माधवजी बनकर उनका जीवन सार्थक कर दिया ।

श्री आईजी ने गोयन्द को धार्मिक उच्चता की शिक्षा दी । वे श्री आईजी के दास बन गए अत: लोग गोयन्ददासजी कहने लगे  । श्री आईजी ने सम्वत्‌ 1557 माघ सुदी बीज शनिवार को बिलाड़ा में उनके समस्त अनुयायियों को एकत्रित कर गोयन्ददासजी को उनका दीवान , धर्मगुरु तथा मुख्य पुजारी घोषित किया । श्री आईजी ने विश्वास व श्रद्दा की भावना से दीवान के उपदेशों को मानने का उपस्थित लोगों को संदेश दिया । श्री आईजी ने दीवान को उनका स्वयं का रुप मानने का संदेश भी दिया ।

उपस्थित जन समूह श्री आईजी , दीवान गोयन्ददासजी , केशरगिरि तथा रुपगिरि की जय जयकार करने लगे । लोगों ने खुशियां मनाई । प्रसाद बनाकर श्री आईजी को चढ़ाकर उनके भाविकों में बांटा ।

दीवान गोयलदासजी अहर्निश श्री आईजी की सेवा में लीन रहने लगे । विभिन्न स्थानों से श्री आईजी के दर्शनार्थ हजारों लोग आने लगे । बिलाड़ा एक धार्मिक क्षेत्र बन गया । लोग री आईजी के दर्शन मात्र से धन्य होने लगे । श्री आईजी की आयुष्य बहुत हो गई  थी । उनका जीवन साक्षात्‌ अम्बा का रुप था । साध्वी के रुप में उन्होने जीवन भर दु को दूर  कर उनका उपहार किया ।

श्री आईजी ने उनके अनुयायियों , केशरगिरि , रुपगिरि व दीवान साहब गोयन्ददासजी को दिव्य दर्शन कराकर मन्दिर में सात दिनों तक दिन – रात लगातार तपस्या करने का कहकर चले गए । मन्दिर के किवाड़ बन्द करने से पूर्व उन्होने यह भी कहा कि सात दिन से पहले दरवाजा मत खोलना । श्री आईजी ने उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि हर  मनुष्य को हर पल काम करते करते प्रभु का स्मरण करना चाहिए ।

जीवन में आफत हो चाहे सामत हो ईश्वर भजन को नहीं भूलना चाहिए ।  प्रत्येक प्राणी का मान रखते हुए जितनी बन पड़े उतनी उसकी सहायता कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए । बेटी को निजी स्वार्थों के खातिर नहीं बेच कर उसकी धर्मपूर्वक शादी कर हर माता – पिता को अपने कर्तव्य का पालन  करना चाहिए । दीन मुखियों की सेवा हुए किसी व्यक्ति की आर्थिक सहायता करने की स्थिती में ब्याज लेने का लालच नहीं करने से सामान्य जन व ईश्वर प्रसन्न होता है । झुठ नहीं बोलते हुए पर नारी व पर धन के त्याग की भावना से ईश्वर साक्षात्कार होता है । साधु –  सन्तो द्दारा बताए पथ का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति सदैव बुराइयों से दूर रह सकता है । सभी धर्मों का सम्मान करना तथा अखण्ड ज्योति के प्रकाश में ईश्वर तत्व के दर्शन कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए ।

श्री आईजी के अनुयायी एक दिन भी उनके दर्शन किए बगैर नहीं रहते थे । अत: उन्होने इतने दिनों तक दर्शन नहीं होने से  व्याकुल होकर मां के सामने ऐसा नहीं करने की हाथ जोड़कर प्रार्थना  करने लगे ।

श्री आईजी ने लोगों की भावकुता की परख कर दीवान गोयन्न्दासजीके दर्शन व उनकी अखण्ड ज्योति के दर्शन का कहने के पश्चात्‌ किवड़ बन्द कर अन्दर चले गए ।

तीसरे दिन मंदिर के बाहर लोगो का मेला सा लग गया । गोयन्ददासजी भी अत्यंत व्याकुल लोगो का धैर्य पांचवे दिन पूर्ण रुप से टूट गया तथा वे दीवान साहेब से मन्दिर के किवाड़ खोलने का दबाव डालने लगे । स्वंय अत्यंत व्याकुल व भावुक श्री गोयन्ददासजी ने कांपते हाथो से मन्दिर के दरवाजे खोल दिए ।

लोगो की भावुकता से उपजी शंका सच निकली । श्री आईजी वहां नहीं थे , वे संदेह जा चुके थे । जोत समा गई , परन्तु जिस गादी पर श्री आईजी बिराते थे , उस पर श्री आईजी का भागवा चोला ,  मोजड़ियां , माला , सन्दरुप नारियल व ग्रंथ मौजूद थे । श्री आईजी का जन्म कोख से नहीं हुआ व निर्वाण भी संदेह हुआ । ऐसे उदाहरण पौराणिक इतिहास मे बहुत कम उपलब्ध है । सती सीता व द्रौपदी का निर्वाण भी संदेह हुआ था ।

राणा सांगा की पुत्रवधू कृष्ण भक्त मीरा की देह नहीं मिली थी । कई सन्त – पुरुषों अथवा महिलाआओं द्दारा जीवित समाधि लेने की स्थितिं में उनकी समाधि को उनके भावुक भक्तों द्दारा खोलने पर वहां देह नहीं मिलना आश्चर्यजनक व अलौकिक लगता है । महात्मा कबीर की देह भी फूलों में  परिवर्तत हो गई थी । श्री आईजी के संदेह निर्वाण पर उनके अनुयायीयों के विलाप – दु:ख का अन्त तब हुआ जब उन्होंने अखण्ड ज्योति में तथा दीवान गोयन्ददासजी में उनके विराट रुप के दर्शन किये ।

संकलन : श्री आईजी दर्शन