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जीजी बड़ नामकरण

थके- हारे किसानों की आंख लगने के पश्चात्‌ ह्ल की हाल का विशालकाय वट वृक्ष तथा जुए की सिवल का रोईण का वृक्ष बन गए ।

जब किसान नींद से जगे तो जीजी वहां नहीं थी । वट वृक्ष तथा रोईण के विशाल वृक्ष जीजी के उपकारों का संदेश दे रहे थे । किसानो ने उस वृक्ष को जीजी बड़ कहना शुरु कर जीजी के उपकारो को स्मरण करने लगे । चीन के दर्शन के अनुसार एक वृक्ष की महता सौ पुत्रो को जन्म देने तथा उन्हे बड़ा करने के समान मानी जाती है । इस प्रकार संत अथवा महान्‌ व्यक्ति जग कल्याण के लिए प्रकृति का रुप बदल सकते हैं परन्तु उनका रुप बदलना प्रकृति की व्यवस्था को और उन्नत तथा विकसित करना होता है । तुलसीदास को श्री राम का दर्शन आक को नियमित करना होता है । तुलसीदास को श्री राम का दर्शन आक को नियमित पानी पिलाने के फलस्वरुप ही हुआ था ।

जीजी के महात्म्य को बढ़ाने तथा आत्मिक शांति एवं संतोष प्राप्त करने के लिए उन सीरवी किसान भाईयो ने उस बड़ के समीप एक मन्दिर बनाकर अखण्ड ज्योति जलाकर अहर्निश ध्यान मग्न रहते हुए अपना नित्य सांसारिक कर्म भी किया ।

जीजी द्दारा अल्प समय में निर्जव तथा सूखी लकड़ियो का विशाल वृक्षो में परिवर्तित होना आज के विज्ञानी मानव के गले नहीं उदारता । क्या कृष्ण द्दारा सुदामा के मुट्‌ठी भर चावल खाने मात्र से धन – दौलत ,  नौकर – चाकर , भव्य – महलों आदि की व्यवस्था क्षण भर में नही हुई ? क्या रामदेवजी ने पॉचों द्दारा जड़ित कटोरे क्षण भर में मक्का से नहीं मंगवाए ? प्रकृति की खोज में लगा आज का विज्ञान बिना नर- मादा के संयोग से सन्तान उत्पन्न करने का सामथर्य रखता है । परमेश्वर की लीला निराली तथा कल्पनीय है। वह समर्थ है। वह कुछ भी कर सकता है जिसे मानवीय मन सोच भी नहीं सकता है ।

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