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जब अहंकार आ जाता है, तो प्रगति वहीं रुक जाती है: संत गोविंदराम

बिलाड़ा अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है, जिस व्यक्ति में अहंकार आ जाता है, उसकी प्रगति वहीं रुक जाती है। सीता स्वयंवर के दौरान परशुराम को भी अहंकार हो गया था कि पूरी सृष्टि में उनके अलावा शिव धनुष को कोई नहीं उठा सकता, तो फिर उसे तोड़ा किसने। अपने अहंकार से वशीभूत होकर ही वे सभा में पहुंचे तथा लक्ष्मण से उलझ गए। मगर भगवान राम ने उनके अहंकार को बड़ी ही विनम्रता से तोड़ दिया। ये बात संत गोविंदराम महाराज ने जैतीवास रोड़ स्थित हनुमान मंदिर बगेची में चल रहें द्विमासिक चातुर्मास सत्संग के दौरान कही। संत ने कहा कि आज का मानव भी ऐसा ही है, जिसके पास थाेड़ा सा धन, बल व ऐश्वर्य आ जाने पर वह अहंकार में डूब जाता है और वहीं से उसका पतन होना शुरू हो जाता है। मनुष्य को धन, बल प्राप्त होने पर भी अंहकार नहीं करना चाहिए। बल्कि उससे दीन दुखियों व असहायों की मदद करनी चाहिए। संत माणिकराम महाराज वृंदावन ने कहा कि मानव जीवन में मनुष्य की भोग और विलासिता कभी खत्म नहीं होती। इंसान हमेशा ही भौतिक संसाधनों के पीछे भागते हुए घर की शांति खो देता है। कथा के दौरान लक्ष्मणराम मेवाड़ा, सीताराम पंवार, सत्यनारायण सैन, मोहनलाल करोलिया, जीयाराम खारवाल, पुरुषोत्तम चौहान, श्यामलाल सैन, भीकमचंद कंसारा, नारायणराम परिहार, भंवरलाल सीरवी, उगमाराम देवासी, कालूराम सीरवी आदि मौजूद थे।