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विज्ञान भी मानता है बच्चे के बेहतर विकास के लिए जरूरी है दादा-दादी, नाना-नानी की सीख

हम में से अगर कोई भी अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ बड़े हुए है तो हम भाग्यषाली है, क्या हमारी आने वाली पीढ़ी भी ऐसा कर रही है, आज जिस तरह षहर बड़े और कमरे छोटे पड़ रहें है जो जवाब होगा नहीं । लोग अकेले होते जा रहे है, सब अपनी एक छोटी सी फैमिली में रहते है, जिसके कारण दादा-दादी, नाना-नानी कुछ दिन के लिए मेहमान बनकर आते है और चले जाते है। विज्ञान भी मानता है कि जिन बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार मिलता है उनको बस प्यार ही नहीं मिलता, उनकी परवरिष और उनके व्यक्तित्व विकास में भी बहुत सहयोग मिलता है। दादा-दादी के साथ गुजारे हुए पल, हमारी जिन्दगी के सबसे यादगार पल होते है, इनका प्यार और ज्ञान बच्चे के बचपन को सुखद बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। जो बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते है उनमें अलग तरह की समझ और संवेदनाये होती है। ऐसे बच्चे मिलनसार, खुष और चीजों को बांटकर इस्तेमाल करने वाले होते है । इनमें सभी की भावानाओं की कद्र करने की समझ पैदा होती है और अकेले रहने वाले बच्चों से काफी अलग होते है। विज्ञान में भी अनगिनत अनुसंधान अध्ययन एवं सहायक आंकड़े है जो मजबूत दादा-दादी के बंधन से होने वाले कई लाभों को उजागर करते है। सही षब्दों में दादा-दादी का साथ होना परिवार के सभी सदस्यों के लिए अच्छा है।

परीवार में खुषी और सुरक्षात्मक भाव :
जिस तरह मंहगाई बढ रही है इसमें माता-पिता दोनो को जॉब या षॉप पर जाना जरूरी हो रहा है जिसके कारण बच्चों को समय नहीं दे पाते है और उनकी परवरिष सही से नही हो पाती है। अपने ग्राड पेरेन्टस के कारण बच्चों की परवरिष में ही नहीं बल्की सुरक्षा की दृश्टी से भी हमें सहयोग मिलता है। आज के वक्त की नजताकत को देखते हुए हम बच्चों को उकेला भी नहीं छोड़ सकते ऐसे में दादा-दादी का साथ होना परिवार में खुषी एवं सुरक्षात्मकभाव का अहसास करवाता है। अपनी पीढ़ी के बारे में जानकर सीखते है नैतिक गुण :
दादा-दादी एक बच्चें की सांस्कृतिक विरासत एवं इतिहास के लिए एक पुल प्रदान करते है। बच्चें परिवार के इतिहास और कुल संस्कार के बारे में जानते है तो इनमें भावनात्मक प्रबलता और किसी के साथ जुड़ाव रखने की समझ पैदा होती है। बच्चे अपने दादा-दादी के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों के करीब आ जाते है, उनमें स्नेह, आदर और सेवा जैसे मानवीय गुण विकसित होते है। दादा-दादी विष्वास, प्रेम और षुरूआती षिक्षा के स्तंभ के रूप में कार्य करते हुए बच्चों को कहानियों के माध्यम से सीखते है कि कैसे मुष्किलों में भी आगे बढ़कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है। जिसके कारण बच्चों के षारीरिक विकास के साथ-साथ किसी भी परिस्थिती में खुष रहने की क्षमता पेदा होती है और ऐसे बच्चों को दिमाग भी तेज होते है। वे दुसरों की तुलता में अधिक स्मार्ट और अक्टिव दिखते है। आपका बच्चा संस्कार, नैतिकता सीखकर एक सुन्दर, समझदार, दयाभावी और सम्मानित व्यक्ति के रूप में विकसित हो सकता है।

भावनात्मक एवं मानषिक रूप से बनते है मजबूत :
दादा-दादी मुल्यवान है उनके पास अपने स्वयं के जीवन से साझा करने के लिए बहुत सारी कहानियों एवं अनुभवन है । जब बच्चे अपने दादा-दादी के साथ अधिक समय बिताते है तो उनमे भावनात्मक एवं व्यवहार संबंधी परेषानियों के निपटने की समझ पैदा होती है। आगे चलकर यही चीजे उनको संयम एवं समझदारी के साथ हर आघात एवं परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाती है। एक अध्ययन के अनुसार जो बच्चें अपने दादा-दादी के साथ रहते है वे अकेलापन, डिप्रेषन और चिंता से कम पीड़ित होते है। वे बच्चें बड़े होकर हर परिस्थिति में रहना सीख जाते है और उन्हे नकारातम्क विचारों से दूर रहने के लिए स्वप्रेरणा मिलती रहती है।

आपके मॉ-बाप भी खुष और सेहतमंद रहेंगे :
अक्सर हम देखते है कि एक अवस्था के बाद या रिटायर हो जाने के बाद बुजुर्ग घर में कई बार बोर और अकेलापन महसूस करने लगते है। ऐसी परिस्थतियों में उनको नये दोस्त बनाने चाहिएं और जब वे अपने पाते-पोती के साथ समय बिताते है तो सिर्फ बच्चें ही नहीं आपके मॉ-बाप की खुष रहते है। अकेलापन उनको असुरक्षा का स्वभाव देता है जिससे कई बार वे डिप्रेषन और भूलने जैसी बीमारी के षिकार हो जाते है। इसी कारण उनको कई असाधारण बिमारियों का सामना करना पड़ता है। यदी आप भी अपने मॉ-बाप को खुष और सेहतमंद जीवन देना चाहते है तो उनको अपने बच्चों के रूप में नये दोस्त बनाने की परम्परा और संस्कृति को जीवित रखें।